उस आदमी ने मशहूर लेखक
पर अनेक पत्थर फैंके
हर बार यही कहता कि
‘यह तेरे उन शब्दों का बदला है
जो तूने हमारे विश्वास पर
पत्थर की तरह फैंके’
पत्थरों से लहुलहान होते हुए भी
लेखक ने प्यार से पूछा
कुछ एसे शब्द मुझे भी तो बताओ
तुमने अपनी बुद्धि से
उनके क्या अर्थ लिये
वह भी तो समझाओ
मैं माफी मांग लूँगा
लिखना छोड दूँगा
जो तुम्हारे विश्वास को
तोड़ते हैं मेरे शब्द
और तुमने मुझ पर इतने पत्थर फैंके
वह आदमी पत्थर बरसाता रहा
सारे माजरे को देखने वाला
एक राहग़ीर रुक गया और
पत्थर फैंकने वाले से पूछा
‘पत्थर क्यों फैंक रहे हो ‘
आदमी ने कहा’मालूम नहीं ‘
इस पर पत्थर बरसाने के लिये
तुमसे किसने कहा है’
वह बोला’नहीं मालूम’
राहग़ीर ने पूछा’ तुम्हारे विश्वासका
स्वरूप कैसा है ‘
आदमी ने कहा’नहीं मालूम
राहग़ीर ने पूछा
‘इस निरीह लेखक पर पत्थर
फैंक रहे हो किसलिये’
वह बोला’निरीह है इसलिये’
राहग़ीर को क्रोध आ गया
‘यह तो तुम्हें बताना होगा कि
किसके कहने पर यह पत्थर फैंके’
वह आदमी रुक गया और बोला
‘जिसने हमें पाठ पढ़ाया और
विश्वास को जगाया
उसके मन में इसके शब्द
तीर की तरह चुभे हैं ‘
इसलिये इस पर मैने
इतने सारे पत्थर फैंके’
राहग़ीर ने पूछा
‘वह शब्द कौनसे हैं ‘
वह आदमी बोला ‘नहीं मालूम
हम तो ठहर चिडी के बादशाह
और हुकम के गुलाम
जहाँ हुआ इशारा वहीं पत्थर फैंके
राहग़ीर उस लेखक को
हाथ पकड़ कर दूर ले गया
उस आदमी ने पीछे से भी पत्थर फैंके
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